बिगड़ना भी न इस कदर 

बिगड़ना भी न इस कदर
चाहिये,
खुद को परखने की बस
नजर चाहिये..
पन्ने अखबार के बेसब्री से
बदल डाले,
सनसनी सी कोई खबर –
चाहिये..
छोटे से घर में क्यो इश्क
पनपता नही,
बड़ा सा उसको भी क्या घर
चाहिये..
ऊँची सबसे उडान हो चाहते-
आसमॉ की,
परिंदो से भी बेहतर उसे पर
चाहिये..
रिश्ते भी पुख्ता होते वही है,
अदाबतो में भी थोड़ा सा ड़र
चाहिये..
लिखता बहुत पर वो कहता नही
है,
कहने के लिये बड़ा जिगर चाहिये
इश्क में आश्की का उसी का मजा
है,
साथ जिसका किसी को न उम्र भर
चाहिये..
है तपस सूरज में तो ठंडक चाँद में
है,
इन फिजाओ का किसमे बसर –
चाहिये..
तुम कहो तो ‘शजर’ युँ लिखना छोड़
दे,
कोई वादा तुम्हारा मगर चाहिये!!

-रमेश”शजर’

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

+

New Report

Close