बारिश की बूंदें

जलती हुई सूरज की किरणों के बीच,
तपती हुई हर चीज़,
जल, थल, खेत, मकान,
गरमी से बोझिल हर जान।

ऐसे में मेघों की गङगङाहट,
ऊपर नीचे होते चातकों की फरफराहट,
बूंदों की चाह में ऊपर ताकता हर प्राणी,
तभी अचानक चेहरे पर पङता, बारिश का पानी ।

लहराती सी,बरसती हुई,बूंदें ठंडी-ठंडी,
गर्म धरती के हृदय से उठती,महक सोंधी-सोंधी,
कभी तेज, कभी धीरे से, नाचती हुईं बौछारें,
तन-मन को ठंडक पहुँचाती,ठंडी सी फुहारें।

नाच उठे हैं देखो तो पंख फैलाकर कैसे सारे मोर,
पिऊं,पिऊं की आवाज़ लगाते,देख घटा घनघोर,
बच्चों की टोली भी भीगे,पानी में छपछप करते पाँव,
तो कहीं पर लगे हुए हैं, दूर तैराते,अपनी कागज़ की नाव।

सब कुछ है,हर कहीं धुला धुला,
हरे भरे से तरु दल,आसमां नीला
सा,मुस्काते से फूल और कलियाँ,
साफ सुथरी सी सङकें,गालियाँ ।

प्रेमी यूगलों के,दिल हो उठे रुमानी,
पेङों के नीचे रुकते,कपङों से निचोङते पानी,
मस्ती भरे बारिश की बूंदों के बीच मिल,
करीब आते दो तेज़ी से धङकते दिल।

मज़ा बहुत है बेमौसम की बरसात में,
चाय पकौङे और हर भीगी भीगी बात में,
भागते,भीगते,बूंदों को पकङने की होङ में,
नीचे गिरते,छलछलाते फुहारों की शोर में ।

मनमोर को करता मदमस्त,ये बूंदों का खेल,
पानी की डोरियों से करवाता,ज़मीन आसमां का मेल,
प्यासी सी धरती की प्यास बुझाते ये नन्हीं सी बूंदें,
मैं भी देखो महसूस कर रही इन फुहारों को,बैठी,आँखें मूंदे।।

– मधुमिता

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