पतझड़
शाखों से टूटकर पते
पतझड़ की निशानी दे गए!
कल थे शान जिन दरख्तों की
आज कदमो तले रुंद गए !
साए देते थे जो मोसफिरों को धूप मे
आज अपने सहारो को भी छोड़ गए !
दरख्तों का लिबास थे कल तक
आज अपना लिहाज भी भूल गए !
पतझड़ आया है तो बहार भी आएगी
नई बहार के साथ , नई कोंपले फिर आ जाएगी !
पतझड़ मे जो दरख्ते कहलाए है ,
फिर पेड कहलाएगे!
Waah
कैसा होता दर्द टूटने का डाली से पूछो,
पतझड़ आने की पीड़ा तुम हरियाली से पूछो,
एक कली खिलने से पहले,कोई तोड़ ले जाये
क्यूँ गुमशुम सा हो जाता है, उस माली से पूछो।
Good
सुन्दर रचना