पकड़ कर ऊँगली जो समन्दर पार कराता है
पकड़ कर ऊँगली जो समन्दर पार कराता है,
बहके गर जो कश्ती तो साहिल यार दिलाता है,
भुलाकर शरारत जो मुझे अपने सर पर उठाता है,
मैं जो रूठूँ तो मुझे वो हर बार मनाता है,
ख़ुशियों की बारिश हो या गमों की धूप,
बस एक वही मेरे सर पर छाया बनाता है,
यूँ तो रिश्ते बहुत हैं जो साथ रहते हैं मेरे,
मगर बस पापा रूपी पर्वत ही मेरा हौंसला बंधाता है।।
राही (अंजाना)
Bahut khoob
Dhnywad
Waah
Thank you
Welcome
Thank you