नयन अश्कों से भिगोता रहा हूं मैं जिन्दगी भर

नयन अश्कों से भिगोता रहा हूं मैं जिन्दगी भर ।
गजल उनको ही सुनाता रहा हूं मैं जिन्दगी भर ।

दरख्ते उम्मीद अब है कहां लगतें तेरे जमी पर
रकीबों सा अब तड़पता रहा हूं मैं जिन्दगी भर।

दुआओं का रुख बदलता रहा ताउम्र,गिरगिटों सा,
मुबारक फिर भी से करता रहा हूँ मैं जिन्दगी भर।

फ़िकर अब किसको रहा है जमाने में देख दिलवर,
दरद अपनी अब भुलाता रहा हूं मैं जिन्दगी भर।

मुकद्दर भी कब सही था हमारा इस दौर “योगी”
मगर रों रों कर हसाता रहा हूँ मेै जिन्दगी भर।

योगेन्द्र कुमार निषाद
घरघोड़ा,छत्तीसगढ़
7000571125

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

छत्तीसगढ़ के घायल मन की पीड़ा कहने आया हूँ।

मैं किसी सियासत का समर्थन नहीं करता हूँ। भ्रष्टाचार के सम्मुख मैं समर्पण नहीं करता हूँ॥ सरकारी बंदिस को मैं स्वीकार नहीं करता हूँ। राजनीति…

Responses

+

New Report

Close