दिल मे क्या दर्द है
दिल मे क्या दर्द है बताऊं क्या
बोलो सहारा दोगे दिखाऊँ क्या।।
आंखों में सन्नाटा नही ये आग है
बोलो बुझाओगे करीब आऊं क्या।।
तन्हाइयां बसी है मेरी दुनिया मे
घंटियां बजाओगे लगवाऊं क्या।।
होठों पे नाम नही है किसी का भी
अपना रचाओगे रचवाऊं क्या।।
नजरें खामोश है मेरी वर्षो से
बोलना सिखाओगे मिलाऊँ क्या।।
दिल धड़कता नही अब सीने में
धड़काओगे दिल मे बसाऊं क्या।।
ख़्वाबों में मेरे कोई नही आता
तुम आओगे बिस्तर लगवाऊं क्या।।
मुद्दत से इस गली से कोई नही गुजरा
तुम गुजरोगे अरमान बिछाऊँ क्या।
मौसम एक ही ठहरा हुआ है सदियों से
तुम आओ तो बदल जाये आओगे क्या।।
अकेला हूँ तन्हा हूँ साथी चाहिए
दुल्हन बन कर आओगी बारात लाऊं क्या।।
@प्रदीप सुमनाक्षर
Nice poem sir bajtreen
Waah
Nice