तुम बस गये हो आँखों में
टूटी नींद मेरी तुम्हारे ही ख्वाब से
तुम बस गये हो आँखों में अब महताब से
इक सफ्हा ज़िंदगी का पुरानी किताब से
कुछ लम्हा -ए- फिराक़ जो गुजरे अज़ाब से
मैंने कहा हिसाब बराबर तेरा मेरा
उसने कहा ज़ख्म हो मेरे हिसाब से
लगती है दीद उसकी मयस्सर नहीं मुझे
जब भी मिला छुपा लिया चेहरा नक़ाब में
महकी फिज़ा है ओर ये महका हुआ समां
खुशबू चुरा के कौन है लाया गुलाब से
कैसे चिराग अब बुझाऐंगी आँधियां
हम ने दिए जलाए हैं सब आफताब से
ज़ालिम है ज़ुल्म कर ले ज़माने में तू मगर
कैसे भला बचेगा खुदा के अज़ाब से
अरशद साद
Bahut khoob janaab