तुम निश्चित ही सम्मान की हकदार होती पद्मावती
तुम निश्चित ही सम्मान की हकदार होती पद्मावती
तुम निश्चित ही
सम्मान की हकदार होती पद्मावती
बशर्ते
तुमने सीता और अहिल्या की बजाय
द्रौपदी का अनुसरण किया होता
रानी झांसी की तरह लड़ा होता
माना कि नहीं थे तुम्हारे पास
पांडव जैसे अजेय तीर
माना कि नहीं थीं तुम
रानी झांसी जैसी वीर
पर यौवन तो था न तुम्हारे पास पद्मावती
जिसने राजा रतन सिंह को भरमाया था
जिसने खिलजी को ललचाया था
इसी यौवन रूपी अमृत को
विष में बदलती
खिलजी को इसी शस्त्र से कुचलती
तुम कैसे भूल गई अपने इस ब्रह्मास्त्र को
तुम कैसे भूल गई अप्सराओं के इतिहास को।
माना, तुम्हें भय था
यौन शोषण और बलात्कार का
माना, तुम्हें भय था
इतिहास के तिरस्कार का
पर इस नज़र से भी सोचना था पद्मावती
देश से ऊपर नहीं होता कोई व्यक्ति
फिर दर्शन भी तो यही कहता है
शरीर से बढ़कर आत्मा की महत्ता है
तुम खुद भी तो सोचती
जब शरीर नष्ट होता है
आत्मा परलोक में, कर्म इहलोक में रहता है।
तुम ही कहो अब, कैसे तुम्हारा गुणगान करूँ
तुम ही कहो अब, कैसे तुम्हारा सम्मान करूँ।
bahut hi utkrashth kavita
thanks anirudh
Nice
thanks manoj
Waah
Nice