जो मन की बंजर धरती में फूल खिलाये तुम
जो मन की बंजर धरती में फूल खिलाये तुम,
टूटी मेरी हिम्मत को जो फिर से जागाये तुम,
बिखरे मेरे मन की चादर जो फिर से लगाये तुम,
उजड़ी हुई बगिया में भी जो सुगन्ध फैलाये तुम,
राहों के राही अनजाने को जो पहचाने तुम,
बेमेल शब्दों को मेरे जो अनमोल बताये तुम,
मेरे जीवन खण्डहर में जो रौशनी का दीप जलाये तुम।।
– राही (अंजाना)
Nyc
Waah
Maja a gya
Waah
Nice
Sunder
Nice