जैसे रहता हो समुन्दर तन्हा, किनारों की तरह…….

पहली मोहोब्बत का तकाज़ा क्या करे हम
वो मिला था हमको बहारों की तरह

दीवानगी इस से बढ़ कर और क्या होगी
हमने चाहा था उसको तलबगारों की तरह

खता क्या हुई एक छोटी सी हम से
वो हमें देखने लगा गुनाहगारों की तरह

के ज़िन्दगी जी हमने तब से खानाबदोशों जैसे
और रहने लगे हम बंजारों की तरह

इस शहर से उस शहर, इस नगर से उस नगर
छुपते रहे बस हम पनाहगारों की तरह

गमो ने ज़िन्दगी मे जगह बना ली इस कदर भी
के खुशियां रह गई महज़ ज़िन्दगी मैं बाज़ारों की तरह

अच्छा सिला मिला उसकी इस चाहत का हमको
ज़िन्दगी बन गई तन्हा, दीवारों की तरह

रातों को जगना, और करवटें बदलना
शरीर हो गया हमारा, बीमारों की तरह

कभी वो मिलता, और पूछता हाल-ऐ-दिल मेरा
खुवाईश बन गई थी, दरारों की तरह

मौत भी डर रही थी मुझ तक पहुचने से जाने क्यों
रूह बन चुकी थी, बैज़ारों की तरह

लाते कहा से हौसला ज़िन्दगी जीने का
हर एक दिन बीता था, तड़प के किरदारों की तरह

लौटना था मुश्किल इस इश्क़-ऐ-सफर से अब
के हालत हो गई थी हमारी कर्ज़दारों की तरह

उसको तो मिल गया था आशियाना अपना
हम बस तन्हा रह गए थे, बफ़दारों की तरह

सहारा लिया हमने मयखाने का इसलिए भी
हर पल बीतता था ग़मखारों की तरह

थोड़ी देर के लिए सब कुछ भूल जाते थे हम
वह लोग मिलते थे सब से यारों की तरह

मोहोब्बत एक हसीं गुनाह है दोस्तों
जिस मे सब फिरते है यहाँ वह मारो मारो की तरह

आंसू बरसते है सबके आँखों से ऐसे
जैसे बरसता है बादल, फुआरों की तरह

मौत जल्दी नसीब होती नहीं उन सब को
और ज़िन्दगी जीते है वो सब एक बेसहारों की तरह

बंध गई ज़िन्दगी किसी दायरे मे ऐसे
जैसे रहता हो समुन्दर तन्हा, किनारों की तरह…………………….!!

!……….D K……….!

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