जंग
जंग
आजकल उलझा हुआ हूँ जरा
कल और आज की अजीब सी उलझन में
मेरे अंतर्कलह का दन्दव
है ले रहा रूप एक जंग का
एक जंग
खुद की खुद से ।
गुन्गुनानाता हूँ , मुस्कुराता हूँ
कुछ यु ही हल-ए-दिल छुपता हूँ
उस दिल का
जहाँ होती है साजिशे
खुद से ,खुद की खातिर…..
एक तरफ खिंची है अरमानो की तलवारे
और दूसरी और
बढ रहा किसी की उम्मीदो का पुलिंदा
और मेरा दिल टूट रहा
जैसे कोई जर्जर सा किला
और बस बन रहा गवाह
गवाह उस जंग का
जो मिटा देगी सायद वजू मेरा ।।
Poet@gulesh
Nice kavita
Dhanyawad