खोज…

खोजते है बचपन अपना ,
ढूंढते है नादानी अपनी ,
कूड़े के ढ़ेर को समझते है
कहानी अपनी !
देखकर मुझको वैसे तो दया सब
दिखाते है, पर
जब कोई गलती हो जाए, तो
पढ़े-लिखे बाबू भी गालियां दे जाते है !
कोड़े का ढ़ेर किसी को पैदा नहीं करता , साहब
हम भी किसी की ओलाद है
सिर्फ गरीबी के नहीं मारे हम,
हम आप सबकी ख़ामोशी के भी शिकार है !
इसलिए कोड़े के ढ़ेर मे बचपन खोज रहे है,
गलतफहमी है की कूड़ा बीन रहे है !

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