खून का रंग

खून का रंग-
कैसे तय होता है?
विज्ञान की मानें तो
आर बी सी से
परिवार की माने तो
माँ-बाप से
समाज की माने तो
जाति, धर्म,वर्ण से
राजनीति की माने तो
वोट और नोट से।

इतने मानक है
फिर भी
लहू लाल ही है
फिर
इतने मानक क्यों है
और सब भ्रामक क्यों हैं।

क्या
इतना मानना काफी नहीं
खून किसी भी मानक का हो
धमनियों में जब तक दौड़ता है
ज़िंदा रहता है
और जब सड़क के बीच आता है
तो मर जाता है।

क्या हमें अब
मानक बदलने नहीं चाहिए
और खून का रंग
केवल जीवन और मृत्यु से तय करने चाहिए।

सलिल सरोज
यह मेरी स्वरचित कविता है एवं इसका प्रकाशन अभी तक किसी पत्रिका या अखबार में नहीं हुआ है।

सलिल सरोज

सीनियर ऑडिटर, सी ए जी ऑफिस

पता B 302 सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट मुखर्जी नगर नाइ दिल्ली 110009

ई मेल salilmumtaz@gmail.com

मेरा नाम सलिल सरोज है। मेरा जन्म नौलागढ़ , बेगूसराय , बिहार में दिनाक 03 /03 /1987 को हुआ। मैंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल तिलैया ,कोडरमा ,झारखंड से पूर्ण किया। मैंने अंग्रेजी भाषा (स्नातक,इग्नू ) ,रूसी भाषा(स्नातक,जे एन यू ) एवं तुर्की भाषा में भी शिक्षा प्राप्त की है। मैंने परास्नातक समाजशास्त्र में इग्नू , नई दिल्ली से किया है। मैं कार्यालय प्रधान निदेशक लेखापरीक्षा , वैज्ञानिक विभाग , नई दिल्ली में सीनियर ऑडिटर के पद पर कार्यरत हूँ।

मुझे बचपन से ही साहित्य में रुचि रही है एवं अच्छे संस्थानों में पढ़ने के बाद यह और भी गहरी होती गई। बचपन में मेरी कविताएं बाल पत्रिकाएं बालहंस एवं मित्र मधुर में प्रकाशित हुई। मैंने अपने स्तर पर बच्चों के लिए “कोशिश “नामक पत्रिका का सम्पादन एवं प्रकाशन भी किया है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली में मैंने छात्रों के लिए विदेशी भाषा के प्रवेश परीक्षा के लिए किताब का सह-सम्पादन भी किया है।

मेरी कविताएँ मेरे कार्यालय की पत्रिका की हर अंक में छपती हैं। मेरी कविता को कार्यालय लेखापरीक्षा मध्य रेल ,जबलपुर में भी स्थान प्राप्त हुआ है। मेरी कविताएँ अमर उजाला काव्य डेस्क एवं वेबदुनिया ई – पेपर में भी प्रकाशित की जा रही हैं। कविताएं मैंने शायरी, ग़ज़लों ,नज़्मों को पढ़कर एवं मुशायरों और कविता सभा में जाके सीखा है।

अपनी कविताओं की किताब के प्रकाशन में मैं प्रयासरत हूँ।

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