खुदा का घर है आसमान, वो रहे रोशन——————-
खुदा का घर है आसमान, वो रहे रोशन——————-
पता करो कि कहां, किसने जाल फैलाया
सुबह गया था परिन्दा वो घर नहीं आया।
रोशनी में ही चलेगा वो साथ—साथ मेरे
कितना डरता है अंधेरों से ये मेरा साया।
मेरी आहट को सुनके बंद रही जब खिडकी
बडी खामोशी से मैं उसकी गली छोड आया।
धूप में जलते हुए उससे ही देखा न गया
पेड मेरे लिये कुछ नीचे तलक झुक आया।
मुझे पता था कि तूफान यूं न मानेगा
मैं अपनी कश्ती डूबो करके घर चला आया।
खुदा का घर है आसमान, वो रहे रोशन
कि डूबा जैसे ही सूरज, तो चांद उग आया।
.———————————————सतीश कसेरा
bahut achi or gahari ghazal
Thanks
सुन्दर
सुन्दर
बहुत खूब