क्यों है आज आत्माए अतृप्त इतनी
क्यों है आज आत्माए अतृप्त इतनी
भूल गई सारी उत्कृष्टताये अपनी
बस स्वअर्जन की चाहनाये इतनी
क्यों विघटन की कामनाये इतनी
हम ही हम की इच्छाये इतनी
दुसरो के लिए वर्जनाएं इतनी
ऐसे कैसे मानवता पनपेगी
है कोई यहाँ पर इतना जतनी
जो बता सके कैसे अर्जन करे
हर इंसा यहाँ मानवता अपनी ।
सरे भेद भाव भूल कर इंसा
अर्जन करे इंसानियत अपनी ।
– डॉ आशा सिंह
Bahut ache words
थैंक्स
nice asha ji
Sundar Kavita
Good