आदमी में घमंड इस कदर हैं चढ़ा
आदमी में घमंड इस कदर हैं चढ़ा।,
छोड़ इंसानियत,खुन……. बहाता रहा।
हौसला रंजिशों का ….बढ़ा हर तरफ ।
माँ बहन से न रिस्ता …..न नाता रहा।,
खाब को क्या कहूँ?, नींद भी डर गया ,
हर जगह कत्ल का ….काम बढ़ता रहा।
पैतरा साजिशों का ……….सरेआम है,
आदमी गिरके ही, खुद …..गिराता रहा।
खुद ही “योगी” सभल जा, राह में आग है,
चाँदनी रात में, चाँद है ……..डराता रहा।
योगेन्द्र कुमार निषाद
घरघोड़ा,छ०ग०
7000571125
Waah
Good
वाह