अब न चांदनी रही न कोई चिराग रहा
अब न चांदनी रही न कोई चिराग रहा
राहों में रोशनी के लिए न कोई आफताब रहा
उनकी महोब्बत के हम मकरूज़ हो गए
उनका दो पल का प्यार हम पर उधार रहा
वेवफाई से भरी दुनिया में हम वफा को तरस गए
अब तो खुद पर भी न हमें एतबार रहा
शम्मा के दर पर बसर कर दी जिंदगी सारी
परवाने को शम्मा में जलने का इंतजार रहा
उन्हे देख देख कभी गज़ल लिखा करते थे हम
अब न वो गजल रही और न वो हॅसी गुबार रहा
बहुत बहतरीन मेरी रचना प्रतियोगिता में है वतन प्लीज कमेन्ट करें
Thanks
वाह बहुत खूब
Thanks
वाह
Nice
👏👏
Shukriya
Nice
Shukriya
लाज़बाब