विचारों को जब

विचारों को जब बाँध रही थी,

अरमानों के साँचे ढाल रही थी,

खिन्न हुई, उद्वगिन हुई  जब,

खुद को मैं आँक रही थी ।
विचारों को खोल  चली जब,

निरन्तर  प्रवाह से जोड़ चली जब,

आशा-निराशा  छोड़ चली जब,

जीवन संग आन्नदित हूँ।
कर्तव्यो की जो होली है,

रंग-बिरंगी  आँख मिचोली है,

संग मैं हूँ, जीवन की जो भी बोली है ।।

https://ritusoni70ritusoni70.wordpress.com/2016/10/15/


 

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Responses

    1. Vichaaron ko jab baandh rahee thee,

      aramaanon ke saanche ḍhaal rahee thee,

      khinn huii, udvagin huii jab,

      khud ko main aank rahee thee . Vichaaron ko khol chalee jab,

      nirantar pravaah se jod chalee jab,

      aashaa-niraashaa chhod chalee jab,

      jeevan sng aannadit hoon. Kartavyo kee jo holee hai,

      rng-birngee aankh micholee hai,

      sng main hoon, jeevan kee jo bhee bolee hai ..

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