मुक्तक

आज भी तेरी जिग़र में आरज़ू जवां है।
आज भी निगाह में ख्व़ाबों का कारवां है।
उल्फ़त के समन्दर में तूफ़ान हैं लेकिन-
मुसीबत में ठहरने का हौसला रवां है।

मुक्तककार- #मिथिलेश_राय

Related Articles

कविता : हौसला

हौसला निशीथ में व्योम का विस्तार है हौसला विहान में बाल रवि का भास है नाउम्मीदी में है हौसला खिलती हुई एक कली हौसला ही…

Responses

+

New Report

Close