नव
नभ के अरुण कपोलों पर,
नव आशा की मुस्कान लिए,
आती उषाकाल नव जीवन की प्यास लिए,
दिनकर की अरुणिम किरणों का आलिंगन कर,
पुष्प दल मदमस्त हुए,डोल रहे भौंरे अपनी मस्ती में,
मकरन्द का आनंद लिए,
नदियों के सूने अधरों पर ,चंचल किरणें भर रहीं ,
नव आकांक्षाओं का कोलाहल,
जीव सहज हीं नित्य नवीन आशाओं के पंख लगाकर
भरते उन्मुक्त गगन में स्वपनों की उड़ाने,
नये-नये नजरिए से भरते जीवन में नव उन्माद सारे ,
चकित और कोरे नयनो में लिए सुख का संसार ,
डोल रहे हम सब धरा पर,
भरने को नव जीवन का संचार ।।
बहुत सुन्दर
thanks
मकरन्द का आनंद…nice rhyming
thanks a lot dear
beautiful poetry with the flow of life… I like it
thanks a lot
वाह
Nice
Thanks