दौड़ सी लगी है।
वर और वधू के लिए
जितनी दौड़ दिख रही है
उससे ज्यादा तो
लड़कों में गर्लफ्रेंड
और लड़कियों में
बॉयफ्रेंड के लिए
आजकल एक
दौड़ सी लगी है।
माँ–बाप से ज्यादा
भाई तो है ही कौन
पैसों के लिए
पता नहीं क्यों लगी है
लेकिन एक
दौड़ सी लगी है।
पत्नी व्यवहार–कुशल न हो
तो भी चलेगा
लेकिन अपने साथ वो
लाई है दहेज़ कितना
इस बात के लिए
आज़ भी एक
दौड़ सी लगी है।
गुरु–शिष्य का रिश्ता
जो सबसे महान होता था
उसे औपचारिक बनाने खातिर
दोनो ही तरफ
पता नहीं क्यों
एक दौड़ सी लगी है।
ज्ञान से ज्यादा
खोखली सफलता ही
बस पाने खातिर
आज़ के
बहुत से विधार्थियों में भी
एक दौड़ सी लगी है।
नोट देकर
वोट लेने खतिर भी
आज़ के बहुत से नेताओं में
एक दौड़ सी लगी है।
भूलकर गुणवत्ता खान–पान की
हटाकर आवश्यकता दिमाग की
नशे मे आयाम बनाने खातिर
और मन को मचलाने खातिर
आज़ के बहुत से युवाओ में
जो घिनौनी ह
लेकिन फिर भी
दिन–दर–दिन
एक दौड़ सी लगी है।
युवा देश है हमारा
कह रहा है ये जहान सारा
रख रहा है पैनी नज़र
कि इस देश के ये युवक
ले जाएँगे देश को
किस डगर
और किस कदर
लेकिन इन युवाऔं में तो
कामनियों के पीछे पागल होकर
खुद को खुद ही
कमजोर बनाने खातिर
एक बहुत ही निराशाजनक
दौड़ सी लगी है।
– कुमार बन्टी
behatreen
THANK U VERY MUCH
बहुत सुंदर
SHUKRIYAA
Bahut Hi Umdaa Post
AAPKA BAHUT BAHUT SHUKRIYA
बहुत सुंदर
Good
बेहतरीन सृजन