Categories: ग़ज़ल
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जंग
जंग आजकल उलझा हुआ हूँ जरा कल और आज की अजीब सी उलझन में मेरे अंतर्कलह का दन्दव है ले रहा रूप एक जंग का…
‘जंग का ऐलान’
जंग का ऐलान हम नहीं करते, पर जंग छिड़ जाने पर पीछे नहीं हटते। यही तो है हम हिन्दुस्तानियों का हुनर, सिर कटा सकते हैं…
खुद की जंग
ना जाने कितनी निर्भया ना जाने, कैसी मर्दानगी बर्बरता की हदें लांघी जुबां तक काटी धरती भी नहीं कांपी कानून को कुछ ना समझे कौन…
युद्ध से एक सैनिक जब घर आया
युद्ध से एक सैनिक घर आया, बिटिया को द्वारे पर पाया। एक हाथ में थैला था उसके, दूजा पीठ पीछे छिपाया। पांच साल की छोटी…
Nice