गर दिल नहीं होता तो ये दरार कहाँ होती

गर दिल नहीं होता तो ये दरार कहाँ होती,
मेरे जिस्म और रूह के बीच दीवार कहाँ होती।।।
राही (अंजाना)

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

ग़ज़ल

२१२२ १२१२ २२ अपने ही क़ौल से मुकर जाऊँ । इससे बेहतर है खुद में (खुद ही) मर जाऊँ ।। तू मेरी रूह की हिफ़ाजत…

Responses

+

New Report

Close