आओ तन मन रंग लें
चली बसंती हवाएँ ,
अल्हड़ फागुन संग,
गुनगुनी धूप होने लगी अब गर्म,
टेसू ,पलाश फूले,
आम्र मंज्जरीयों से बाग हुए सजीले,
तितली भौंरे कर रहे ,
फूलो के अब फेरे ,
चहुंँ दिशाओं में फैल रही,
फागुन की तरूणाई,
आओ तन मन रंग लें,
हम मानवता के रंग ,
भेद-भाव सब भूल कर,
आओ खेलें रंगों का ये खेल ,
प्रेम , सौहार्द के भावों से,
हो जाए एक-दूजे का मेल,
होली पर्व नहीं बस रंगो का खेल,
प्रेम , सौहार्द के भावों का है ये मेल ।।
behatreen ji
Thanks a lot Sridhar ji
Waah
Thanks a lot Shakun ji
बहूत ही बढिया,रितू जी
Thanks a lot ABHAY. Ji
Nice